वर्तमान समय में शिक्षा का स्तर
शिक्षा एक अंत तक चलने वाली प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म से मृत्यु पर्यंत इस प्रक्रिया से गुजरता हुआ कुछ न कुछ सीखता ही रहता है। अगर हम शिक्षा की आज तक की गई तमाम परिभाषाओं को एक साथ रख दे और फिर कोई शिक्षा का अर्थ ढूंढे तो भी हमें कोई ऐसा अर्थ नहीं मिलेगा जो अपने आप में पूर्ण हो। वर्तमान में शिक्षा का अर्थ केवल स्कूली शिक्षा से लिया गया है अपितु शिक्षा हर प्रकार की हो सकती है जैसे तकनीकी शिक्षा व्यवसाइक शिक्षा इत्यादि l
शिक्षा के गिरते स्तर के कारण उसकी गुणवत्ता पर प्रश्न खड़ा होना जरुरी है। लेकिन इस बात के जिम्मेदार कौन लोग है। इस ओर न तो राजनीतिक मंथन हो रहा ना ही सामाजिक चिंतन किया जा रहा है। बातें शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की अक्सर सुनने में आती है। किन्तु सुधार कहीं नजर नहीं आता । वह तो हमारी शिक्षा नीति में बहुत सुधार की आवश्यकता है
यंहा अगर हम बात करें समाज की तो दो दशक पहले के समाज में अभिभावक शिक्षकों को भगवान् से भी ज्यादा सम्मान देते और दिलाते थे अपने बच्चे की हर अच्छी बुरी बात से अध्यापक को परिचित कराते थे. पालक सरकारी स्कूल के अध्यापक से भी व्क्यतीगत तथा जीवंत संबंध रखते थे l बच्चे की गलती पर स्वयं उसे न डांटकर उसके अध्यापकों के सामने उसकी गलती का खुलासा करते थे और अध्यापक उन्हीं के समक्ष बच्चे को समझाते थे और बच्चा भी अपने अध्यापक के हर एक शब्द को अक्षरत: पालन कर उनकी महत्ता को प्रदर्शित करता था. परन्तु आज का समय बदल चुका है, परिवार बिखर चुके हैं माता-पिता अपनी एक या दो संतानों को बड़े ही नाजों से पालते हैं ऐसे में उनके बच्चे को किसी भी प्रकार की असुविधा उन्हें गवारा नहीं. जिस देश में भगवान् श्री कृष्ण और सुदामा एक ही आश्रम में शिक्षित हुए हों उस देश में आज विद्यालयों का विभाजन हो चुका है. विद्यार्थियों की योग्यता इन सभी बातों से बुरी तरह से प्रभावित हो रही है.
आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी सरकारी नियंत्रण वाले प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में न तो शिक्षा का स्तर सुधर पा रहा है और न ही इनमें विद्यार्थियों को बुनियादी सुविधाएं मिल पा रही हैं। जाहिर है कि प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा के सुधार के लिए जब तक कोई बड़ा कदम नहीं उठाया जाता, तब तक हालात नहीं बदलेंगे। निम्न मध्यवर्ग और आर्थिक रूप से सामान्य स्थिति वाले लोगों के बच्चों के लिए सरकारी स्कूल ही बचते हैं। आज भी देश की एक बड़ी आबादी सरकारी स्कूलों के ही आसरे है। फिर वे चाहे कैसे हों। इन स्कूलों में न तो योग्य अध्यापक हैं और न ही मूलभूत सुविधाएं। बड़े अफसर और वे सरकारी कर्मचारी जिनकी आर्थिक स्थिति बेहतर है, अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं।
हमारी शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए अभिभावकों को भी जागरूक करने की भी आवश्यकता है क्योंकि शिक्षा क्षेत्र में अनेक सरकारी परियोजनाओं के बारे में अभिभावक जानकारी के अभाव में बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दे पाते। स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए हमें वर्तमान शैक्षिक उद्देश्यों को भी पुनरीक्षित करना होगा। शिक्षा, महज परीक्षा पास करने या नौकरी/रोजगार पाने का साधन नहीं है। शिक्षा विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास, अन्तर्निहित क्षमताओं के विकास करने और स्वथ्य जीवन निर्माण के लिए भी जरूरी है। हमें शिक्षा के लिए हमारी शिक्षा की नीतियों की जी कमियाँ है उन्हें दूर करना ही होगा । जिससे शिक्षा के स्तर में सुधार हो सके ।
शिक्षक ही तो इस समाज को चिकित्सा, इंजीनियर , आई एस अफसर, वैज्ञानिक और न जाने क्या क्या देता है ! ये समाज इन शिक्षकों का सदैव ऋणी रहा है तथा आगे भी रहेगा ! इनको समय समय पर उचित सम्मान देना हम सब की ज़िम्मेदारी भी है और कर्तव्य भी. परन्तु साथ ही शिक्षकों को भी सदैव अपनी भूमिका को समझना होगा और पूर्णनिष्ठा के साथ इसका निर्वहन भी करना ही होगा ! तभी देश में शिक्षा का गिरता हुआ स्तर ऊपर उठ सकेगा और एक कर्तव्यनिष्ठ, जागरूक, निष्ठावान, प्रतिभावान नागरिक देश को मिल सकेगा जिस पर राष्ट्र को अभिमान होगा !