किशोरावस्था में कॅरिअर बनाने के पहले शारीरिक आकर्षण अनुचित है

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Teenage

बाल्यावस्था से प्रौढ़ावस्था तक के महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों जैसे शारीरिक, मानसिक एवं अल्पबौधिक परिवर्तनों की अवस्था किशोरावस्था (Teenage) है। वस्तुतः किशोरावस्था यौवानारम्भ से परिपक्वता तक वृद्धि एवं विकास का काल है। 10 वर्ष की आयु से 19 वर्ष तक की आयु के इस काल में शारीरिक तथा भावनात्मक सरूप से अत्यधिक महवपूर्ण परिवर्तन आते हैं। कुछ मनोवैज्ञानिक इसे 13 से 18 वर्ष के बीच की अवधि मानते हैं, जबकि कुछ की यह धारणा है कि यह अवस्था 24 वर्ष तक भी रहती है।

बाल्यावस्था से प्रौढ़ावस्था तक के महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों जैसे शारीरिक, मानसिक एवं अल्पबौधिक परिवर्तनों की अवस्था किशोरावस्था (Teenage) है। वस्तुतः किशोरावस्था यौवानारम्भ से परिपक्वता तक वृद्धि एवं विकास का काल है। 10 वर्ष की आयु से 19 वर्ष तक की आयु के इस काल में शारीरिक तथा भावनात्मक सरूप से अत्यधिक महवपूर्ण परिवर्तन आते हैं। कुछ मनोवैज्ञानिक इसे 13 से 18 वर्ष के बीच की अवधि मानते हैं, जबकि कुछ की यह धारणा है कि यह अवस्था 24 वर्ष तक भी रहती है।

किशोरावस्था शिक्षा विद्यार्थियों के किशोरावस्था के बारे में जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता के सन्दर्भ में उभरी एक नवीन शिक्षा का नाम है। किशोरावस्था जो कि बचपन और युवावस्था के बीच का परिवर्तन काल है, को मानवीय जीवन की एक पृथक अवस्था के रूप में मान्यता केवल बीसवीं शताब्ती के अंत में ही मिला पायी। हजारों सालों तक मानव विकास की केवल तीन अवस्थाएं–बचपन, युवावस्था और बुढ़ापा ही मानी जाती रही है। कृषि प्रधान व ग्रामीण संस्कृति वाले भारतीय व अन्य समाजों में यह धारणा है कि व्यक्ति बचपन से सीधा प्रौढावस्था में प्रवेश करता है। अभी तक बच्चों को छोटी आयु में ही प्रौढ़ व्यक्तियों के उत्तरदायित्व को समझने और वहाँ करने पर बाध्य किया जाता रहा है। युवक पौढ पुरुषों के कामकाज में हाथ बंटाते रहे हैं और लडकियां घर के. बाल विवाह की कुप्रथा तो बच्चों को यथाशीग्र प्रौढ़ भूमिका में धकेल देती रही है। विवाह से पूर्व या विवाह होते ही बच्चों को यह जाने पर बाध्य किया जाता रहा है कि वे प्रौढ़ हो गए हैं।

किशोर अवस्था शारीरिक व मानसिक वृद्धि तथा विकास की अवस्था है। वृद्धि की इस अवधि के दौरान किशोर नई भूमिकाएं, जिम्मेदारियां व पहचान लेते हैं। जीवन के इस दौर में कई बार किशोरों के मनोभाव बदलते हैं और तनाव रहता है। जो परिवार के दृष्टिकोण व मूल्यों के साथ टकराव का कारण बनते हैं। बताया कि ऐसी स्थिति में किशोर वर्ग को संयमित व संतुलित व्यवहार के जरिये वास्तविकता से रूबरू कराया जाना चाहिए. विचारों के टकराव के दौरान अभिभावक व समाज का कठोर व्यवहार किशोर वर्ग के लिए घातक साबित होता है। बताया कि कुछ कारक किशोर, किशोरियों को नशीले पदार्थों के इस्तेमाल में पड़ने के प्रति संवेदनशील होते हैं। लिहाजा इस दौर में किशोर, किशोरियों पर नियंत्रण वाले व्यवहार के बजाय भावनात्मक रूप से अभिभावक व समाज के करीब लाने वाला व्यवहार किया जाना चाहिए ।

आपको यह समझना ज़रूरी है कि मनुष्य-जीवन में किशोर अवस्था (Teenage) बड़ी ही निर्णायक अवधि होती है। यही वह जीवन का वह समय है, जब लड़के-लड़कियाँ जीवन भर के लिये बनते बिगड़ते हैं। किशोर अवस्था में जिन बालक-बालिकाओं के विकास को सही दिशा मिल जाती है, उनका जीवन सफल और जिनकी दिशा ग़लत हो जाती है, उनका जीवन एक उलझी हुई समस्या की तरह हो जाता है। ऐसे लोग स्वयं को तथा पूरे परिवार को दुखी करते है।

चूँकि लोग किशोरों को किसी काम के योग्य नहीं समझते, इसलिये उन्हें ठाली ही रक्खा करते हैं, कोई काम नहीं सौंपते। इसीलिये आजकल किशोर-अपराधियों की संख्या निरन्तर  बढ़ती ही जा रही है। बेकार रहने से ही किशोर भी बिगड़ते जा रहे हैं।