मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अत: जहाँ वह निवास करता है उसके अस-पास होने वाली घटनाओं के प्रभाव से वह स्वयं को कब्जी भी अलग नहीं रख सकता है। उस राष्ट्र की राजनीतिक, धार्मिक व आर्थिक परिस्थितियाँ उसके जीवन पर अवश्य प्रभाव डालती हैं। सामान्य तौर पर आम लोगों की यह धारणा है कि विद्यार्थी जीवन में राजनीति का समावेश नहीं होना चाहिए । Student Politics में भाग लेने का प्रश्न हमेशा ही विवाद का विषय रहा है। यह बहुत ही विवादास्पद समस्या है। समाज के दो वर्गो द्वारा हमेशा दो परस्पर विरोधी मत व्यक्त किए जाते रहे हैं।
दोनो वर्ग अपने तर्कों के श्रेष्ठ होने के बारे में समान रूप से आश्वस्त हैं। विद्यार्थियों, अध्यापकों, राजनीतिज्ञों और विद्यार्थी समुदाय के अन्य शुभचिन्तकों के बीच अक्सर वाद-विवाद होता रहता है। उनके भरपूर प्रयासों के बावजूद भी इस सम्बन्ध में अभी तक कोई संतोषजनक और विश्वास योग्य हल नहीं निकल पाया है।
प्राचीन काल में यह विषय केवल राज परिवारों तक ही सीमित हुआ करता था। राजनीति विषय की शिक्षा केवल राज दरवार के सदस्यों तक ही सीमित राखी जाती थी। परंतु समय के साथ इसके स्वरूप में बहुत ही परिवर्तन आया है। अब यह किसी वर्ग विशेष तक सीमित नहीं रह गया है। अब कोई भी विद्यार्थी चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो इस विषय को प्रमुख विषय के रूप में ले सकता है।
भारतीय नागरिक होने के कारण हमारा यह दायित्व बनता है कि हम देश की राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण को रोकें । विद्यार्थियों को यदि राजनीति के मूल सिद्धांतों की जानकारी होगी, तभी वे देश के नागरिक होने का कर्तव्य भली-भाँति निभा सकते हैं । राजनीति का स्वरूप भी स्वच्छ होना चाहिए ।
विद्यार्थियों को अपनी शिक्षा प्राप्ति के दौरान ऐसी Student Politics गतिविधियों में भाग लेने से बचना चाहिए जिनसे उनकी सामूहिक शिक्षा बाधित हो। आज के चतुर राजनीतिज्ञ अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु विद्यार्थियों को मोहरा बनाते हैं। उन्हें तोड़-फोड़ तथा अन्य हिंसात्मक गतिविधियों के लिए उकसाया जाता है। परिणामस्वरूप विद्यार्थियों का अमूल्य समय नष्ट हो जाता है।
महाविद्यालयों की Student Politics में प्रवेश करने का अर् केवल इतना है कि सभी छात्र लोकतंत्र की मूल भावना को समझें तथा साथ-साथ राजनीति के उच्च मापदंडों को आत्मसात् कर आवश्यकता पड़े तो Student Politics में प्रवेश लेकर राष्ट्र निर्माण की ओर अपने कदम उठाएँ। छात्र हमारे समाज के युवा वर्गों का सही अर्थों में तभी प्रतिनिधित्व कर सकते हैं जब वे सभी प्रकार से योग्यता संपन्न और चरित्रवान् हों।
युवा अवस्था में विद्यार्थिकाल भावना प्रधान समय होता है, जिसमें जोश की प्रधानता और होश का अभाव होता है। युवा विद्यार्थियों की गतिविधियों का नियंत्रण मस्तिष्क से इतना दूर निकल जाता है कि उसका दामन पूर्णतः उनके छूट जाता है और व्यक्तिगत जीवन की तरह वे राजनीति में भी स्वप्नदर्शी अथवा आकाश-बिहारी ही बने रहते हैं। इस प्रकार Student Politics गरमा गरम नारेबाजी ही बनकर रह जाती है। इसलिये अनुभवहीन युवा वर्ग का सक्रिय Student Politics में आना जहां स्वयं उनके भविष्य के लिए हानिकारक है, वहाँ देश और समाज के लिए भी अत्यंत घातक है। फिर भी भारत जैसे देश जहां लोकतांत्रिक तरीके से काम करने की सशक्त परम्परा है, जीवंत जनमत है और युवाओं की प्रगति व कल्याण में रूचि लेने वाला समाज का प्रभावशाली वर्ग भी विद्यमान है।
हमारा इतिहास गवाह है कि देश की भाग्य लिपियों को हमेशा हमारे युवाओं ने ही अपने रक्त की स्याही से लिखा है। लेकिन यह समाज हमारे का दुर्भाग्य है कि वह अपने युवा को उत्तरदायित्व निर्वहन का सही और सामाजिक प्रशिक्षण नहीं दे पता है। आज युवाओं से अपेक्षा करना और उसके साथ ही उनकी उपेक्षा करने का एक रिवाज चल पड़ा है। लोग यह भुल जाते हैं कि युवा वर्ग ही इस देश का भावी उत्तराधिकारी है। अतः विद्यार्थियों का स्वच्छ राजनीति में होना देश निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभा सकता है, वह राजनीति जो गंदगी से कोसो दूर हों तथा जिसमे स्वयं का नहीं अपितु देश एवं समाज का हित सर्वोपरि हो।