देश में लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर स्कूलों पर पड़ा है। स्कूल बंद होने के कारण ऑनलाइन क्लालेस शुरू हुई तो इसके साथ ही सभी जगह फीस का विवाद भी खड़ा हो गया। मामला पहले से सुप्रीम कोर्ट में है और ताजा खबर यह है कि देश की सर्वोच्च अदालत ने मामले में अपना अंतिम फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि लॉकडाउन के दौरान स्कूल पूरी फीस नहीं वसूल सकते हैं। हालांकि यह फैसला आम आदमी के लिए राहत भरा नहीं है। दरअसल, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि निजी स्कूल राज्य कानून के तहत निर्धारित वार्षिक फीस वसूल सकते हैं। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि स्कूलों को शैक्षणिक सत्र 2020-21 की वार्षिक फीस में 15 प्रतिशत की कटौती करें, क्योंकि बच्चों को इस वर्ष में वह सुविधाएं नहीं मिली जो स्कूल जाने पर मिलती है। राजस्थान के 36,000 गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश जारी किया है।
कारणवश यदि कोई अभिभावक फीस नहीं चुका पाते हैं तो उनके बच्चों को ऑनलाइन क्लासेस से वंचित नहीं रखा जा सकता है। स्कूलों को ऐसे बच्चों की परीक्षा भी लेना होगी और परिणाम भी जारी करना होगा। हालांकि पूरे मामले में अभिभावकों को झटका लगा है। दरअसल, राजस्थान हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि स्कूल 60 से 70 फीसदी फीस ही वसूल करे। यानी जितनी ट्युशन फीस है वही वसूली जाए। इसके खिलाफ पालकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और पूरी स्कूल फीस पर छूट की मांग की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था ।
हालांकि अभी भी स्थिति पूरी तरह साफ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला सामने आने के बाद ही साफ हो पाएगा कि निजी स्कूल कितनी और किस तरह से फीस की वसूल कर सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने छह किस्तों में फूस देने की सुविधा दी है। स्कूल प्रबंधन की ओर से प्रतिक्रिया नहीं आ रही है।
इधर मध्य प्रदेश में मनमानी पर उतारू निजी स्कूल दोहरा दांव खेल रहे हैं। वे शिक्षक सहित अन्य कर्मचारियों को तो पूरा वेतन दे नहीं रहे और बच्चों से फीस पूरी लेना चाहते हैं। इतना ही नहीं, मनमानी फीस भी बढ़ाने की इच्छा रखते हैं। जब सरकार ने इस पर रोक लगाई, तो निजी स्कूलों के संगठन ने 20 हजार स्कूलों में 12 जुलाई से ऑनलाइन कक्षाएं बंद करने की चेतावनी देकर सरकार को चुनौती दे दी। संगठन कोरोना की तीसरी लहर की चिंता किए बगैर अन्य संस्थानों की तरह स्कूल भी खोलना चाहते हैं।
स्कूलों की फीस को लेकर करीब एक साल से अभिभावक, स्कूल और सरकार के बीच खींचातानी चल रही है। कोरोना काल में आमदनी के संसाधन छिन जाने या सीमित होने से आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा टूट चुके अभिभावक अधिक फीस देने की स्थिति में नहीं हैं। इसे देखते हुए राज्य सरकार ने पिछले साल और वर्तमान में सिर्फ शिक्षण शुल्क (ट्यूशन फीस) लेने के निर्देश दिए हैं। इसके पीछे तर्क है कि वर्तमान में कर्मचारियों के वेतन के अलावा स्कूलों का कोई खर्च नहीं है। यही व्यवस्था करीब आठ महीने पहले जबलपुर हाईकोर्ट ने दी थी।
कोर्ट ने यह भी कहा था कि स्कूल, शिक्षक और अन्य कर्मचारियों को पूरा वेतन दें। जरूरी हो तो सिर्फ 20 फीसद ही वेतन काटें। बावजूद इसके,बहुत से स्कूल मार्च 2020 से अपने कर्मचारियों को 50 फीसद ही वेतन दे रहे हैं। इतना ही नहीं, कई कर्मचारियों की सेवाएं भी समाप्त कर दी गई हैं। फिर भी बच्चों से फीस पूरी लेने की चाहते है। जो की अनुचित है । स्कूलों में नियमित कक्षाएं शुरू करने के लिए बहुत से स्कूल संचालक स्कूलों की तुलना बाजार, मॉल, शादी समारोह से भी कर रहे हैं। एसोसिएशन ऑफ अन एडेड प्राइवेट स्कूल मध्य प्रदेश के पदाधिकारियों ने तर्क दिया कि जब सरकार ने बाजार, मॉल, पिकनिक स्पॉट खोल दिए हैं। शादी समारोह की अनुमति दे दी है, तो स्कूल क्यों नहीं खोले जा रहे। वे इस पर विचार करने को भी तैयार नहीं हैं कि मॉल, बाजार और स्कूल खोलने में फर्क है। बाजार, मॉल, पिकनिक और शादी समारोह में सीमित संख्या में बच्चे जाते हैं, सैकड़ों में नहीं और इतने बच्चों में शारीरिक दूरी के नियम का पालन कराना इतना संभव नहीं है।
क्या हम मानवीय संवेदनाएं खो चुके हैं ? क्या हम विपरीत परिस्थितियों में देश और समाज के साथ खड़े नहीं हो सकते है । पूरा जीवन पड़ा है आपके सामने कमाने के लिए । देश और समाज अपनी आर्थिक गति को पकड़ ले तब तक तो साथ दे दीजिये ।