संयुक्त राष्ट्र संघ ने जब पूरे विश्व के लिये विकास के लक्ष निर्धारित किये तब उसमे समावेशी शिक्षा को अत्यधिक महत्त्व दिया। शिक्षा से वंचित वर्गो में पूरे विश्व में सबसे बडा हिस्सा महिलाओं का है। पूरे विश्व में ही पूरूषों कि अपेक्षा शिक्षा महिलाओं में शिक्षा का स्तर आधे से भी कम है। भारत में स्वतंत्रता के समय यह स्थिति अत्यंत विकट थी। की दर यह 12 प्रतिशत थी वहीं महिलाओं कि साक्षरता केवल 8.9 प्रतिशत थी। 63 वर्षो के प्रयास से इसमें काफी सुधार हुआ किंतु फिर भी महिलाओं एवं पुरूषों के साक्षरता में अभी भी बहुत अधिक अंतर है। 2011 की जणगणना के अनुसार जहाँ पुरूषों साक्षरता 82 प्रतिशत है वही महिलाओं की साक्षरता 63.5 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखंड आदि राज्यों में यह 55 प्रतिशत से भी कम है। महिला साक्षरता के हिसाब से बिहार सबसे पिछडा है। जहाँ केवल 51 प्रतिशत है। इस परिस्थिति से यह स्पष्ट होता है कि स्वतंत्रता के 70 वर्षो बाद भी महिला शिक्षा के लिये विशेष प्रयास करना आवश्यक है।
विषय केवल साक्षरता का नहीं है। एक बार प्रवेश करने के बाद विद्यालयीन शिक्षा से दूर जाने वाले-छिटके हुये में भी बालकों से अधिक बालिकाओं की संख्या है। प्राथमिक, उच्च प्राथमिक स्तर पर भी बहुत बडी संख्या में बालिकांओं द्वारा विद्यालय छोडना यह एक बहुत बड़ी चुनौति है। विद्यालयों में महिलाओं हेतु शौचालयों की कमी तथा अपने घर से विद्यालय जाने हेतु साधनों की कमी इन दो भौतिक कारणों का चिह्नित किया गया। इनके निवारण हेतु केंद्र सरकारने विशेष अनुदान की व्यवस्था की। जिन राज्य सरकारों ने इसका लाभ उठाया वहाँ सभी विद्यालयीन छात्राओं को सायकल प्रदान की गयी। मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात के गावों की सडकों पर सायकलो से विद्यालय जाती छात्राओं का मनोहर दुश्य दिखाई देने लगा। मा। प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले की प्राचीर से स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत विद्यालयों में शौ चालय निर्माण हेतु आहवान किया। सरकार के साथ ही निजी कंपनियों द्वारा अत्यंत सकारात्मक प्रत्युतर इस आहवान को प्राप्त हुआ। केंद्रीय शिक्षा मंत्री के अनुसार लगभग सभी विद्यालयों में बालिकाओं के लिये शौचालय का लक्ष इस वर्ष प्राप्त कर लिया है। कुछ राज्यों में थोडी संख्या में विद्यालयें बचे है वहाँ भी वर्तमान शैक्षिक वर्ष में बालिकाओं के लिये व्यवस्था पूर्ण होने की अपेक्षा है।
भारत में महिलाओं की शिक्षा का विचार करते समय केवल भौतिक बाधाओं का विचार करने से काम नहीं चलेगा। भारत की विशिष्ट ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ध्यान रखते हुये सामाजिक एवं सांस्कृतिक चुनौति पर भी विचार करना आवश्यक है। भारत के इतिहास को सही ढंग से प्रस्तुत नहीं किया गया। जिसके कारण महिला के प्रति भेदभाव को सामाजिक एवं सांस्कृतिक आधार प्रदान किया गया। इस मानसिकता को बदलने हेतु भारत की गौरवशाली परंपरा में महिलाओं को प्राप्त विशिष्ट स्थान के बारें में समाज को अवगत कराया जाना आवश्यक है। ताकि कोई ये ना कह सके कि हमारे यहाँ तो लडकियों को पढाया ही नहीं जाता।
समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण परिवर्तन हेतु ऐतिहासिक सत्य को समाज में रखना अत्या आवश्यक है। हम परंपरा से ही महिलाओं को समान अधिकार और शिक्षा देते रहे है यह बात वर्तमान में महिलाओं की शिक्षा हेतु पेरित करने कारगर होगा। शोषन के बाते बताने में समाज को प्रेरणा नहीं मिलती है। परंपरा के तथ्यो से अवगत कराने से सहजता से बात आगे बढती है। संस्कृति और समृद्धी को साथ-साथ लक्ष करते हुये भारत को विश्व गुरु बनाने की दिषा में चल रहें प्रयासों में महिलाओं को भी साथ लिये बिना लक्ष प्राप्ति संभव नहीं अतः महिला शिक्षा को समृद्ध परंपरा के रूप में प्रतिष्ठित करना होगा।
अंत में हम यही कहना चाहेंगे कि
पढ़ी लिखी जब होगी माता , घर की बनेगी भाग्य विधाता ।