शिक्षा ही जीवन का मूल आधार होती है । इस बात में कोई दो राय नहीं है की शिक्षित व्यक्ति की समाज में अलग ही पहचान होती है । हमारे जीवन एवं स्वभाव का आधार है हमारी शिक्षा । आज के युग में जो भी छोटे बड़े दोष किसी व्यक्ति में होते है उसका मुख्य कारण उसकी शिक्षा होती है।
हमारी सरकार भी इस बात से भलीभांति परिचित है कि अगर शिक्षा का प्रसार ना किया गया तो देश कभी आगे नहीं बढ़ पायेगा। इस बात को ध्यान में रखकर सरकार शिक्षा का प्रसार करने की नई नई योजनाएँ बना रही है। हमारी सरकार इस बात की घोषणा कर चुकी है कि वो देश से निरक्षरता को ख़त्म कर देगी किंतु हमे यह भी ध्यान में रखना होगा कि हमारी शिक्षा प्रणाली कैसी है।
हमारी शिक्षा प्रणाली के मुख्य दोष दण्ड, परीक्षा, कुरूप भवन, अत्यधिक कार्य एंव स्वाभिमान रहित अध्यापक है । एक ओर हम डिजिटल इंडिया की बात करते है दूसरी ओर हम हमारे बच्चों के लिए उचित शिक्षा का भी प्रबंध करने में भी सक्षम नहीं है । यदि हमे हमारे बच्चो को उचित शिक्षा प्रदान करनी है तो पहले हमे शिक्षण संस्थानों की शिक्षण प्रणाली का मंथन करना होगा| उसके दोषो को दूर करना होगा| आज के विद्यार्थी के लिए शिक्षा के कोई मायने नहीं है सिर्फ परीक्षा पास करना और अच्छे अंक लाना ही सभी विद्यार्थियों का ध्येय बन चुका है ज्ञान प्राप्त करने में कोई भी दिलचस्पी नहीं ले रहा है| अगर हम इसी ढर्रे पर चलते रहे तो हमारा देश कभी आगे नहीं बढ़ पायेगा । आज के दौर में माता पिता भी यही सोचते है कि उनके बच्चे को अच्छी नौकरी तभी मिलेगी जब उसे परीक्षा में अच्छे अंक मिलेंगे । इसी कशमकश में विद्यार्थी पिसता है और ज़रुरी ज्ञान को नज़रअंदाज़ करके सिर्फ अच्छे अंक लाने में जुट जाता है।
यह कहना गलत नहीं होगा की शिक्षा ही नौकरी का पर्यायवाची बन चुकी है । ऐसी हालत में हर व्यक्ति स्वार्थ-सिद्ध करने में लीन रहेगा, इसके अलावा उससे और किस बात की उम्मीद की जा सकती है? ऐसा व्यक्ति समाज के विकास की ओर कैसे ध्यान दे सकता है? आज हमारी शिक्षा प्रणाली बहुत दोष-युक्त हो गई है, हमे इसके सभी दोष को मिटा-कर एक उच्च शिक्षा प्रणाली का विकास करना होगा । हमे हमारी शिक्षा प्रणाली को तीन भागों में बाँटना चाहिए शारीरिक शिक्षा, मानसिक शिक्षा और आध्यात्मिक शिक्षा |
शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य शारीरिक निर्माण और रोगों से रक्षा होना चाहिए । इस भाग में हमे बच्चो को भोजन एंव व्यायाम के बारे में शिक्षित करना चाहिए । हमे विद्यार्थियों को सीखना चाहिए की कब कितना व्यायाम करना चाहिए, कितना भोजन करना चाहिए, क्या खाना सेहत के लिए हानिकारक है | इससे विद्यार्थियों का शारीरिक विकास तो होगा ही इसके साथ साथ वे सेहत के लिए भी जागरूक होंगे ।
मानसिक शिक्षा का लक्ष्य विद्यार्थियों के मस्तिष्क का उचित तरह से विकास होना चाहिए । इसका मतलब यह नहीं है की वे अपनी पुस्तकों को अच्छी तरह याद करे बल्कि वे पुस्तको से मिलने वाले ज्ञान को अपने आचरण में समाहित करे । उनमें सेवा का भाव जाग्रत हो, नयी बाते जानने की उत्सुकता उत्पन्न हो और वे अपने ज्ञान में हमेशा वृद्धि करते रहे ।
आध्यात्मिक शिक्षा का लक्ष्य यह होना चाहिए कि विद्यार्थियों में दूसरो के लिए सम्मान तथा आदर भाव जाग्रत हो, अपने निकट रहने वालो के प्रति भाईचारे की भावना का उत्पन्न हो एंव दया तथा सोहाद्र के भावों की वृद्धि हो |
सही शिक्षा का यह प्रभाव होना चाहिए की हर विद्यार्थी विश्व के सभी जीवो के प्रति प्रेम भाव रखे । कभी किसी को कोई नुकसान न पहुँचावे । सभी राष्ट्रों, जातियो, धर्मो के प्रति सम्मान की भावना रखे । तभी हम यह उम्मीद कर सकते है की हमारा देश तरक्की की नई ऊंचाइया छू पायेगा ।
Its not the part of parents only, even teachers and faculties too have to come in favor of parents and student for ongoing development of money-making-schools.
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