यह जानना बहुत ही ज़रूरी है कि क्या भारत की सरकार हर साल अपने बजट में शिक्षा क्षेत्र का पूरा ख्याल रख रही है? पिछले साल के बजट में सरकार ने शिक्षा क्षेत्र के लिए पैसा बढ़ाया और कुल बजट का 9.9 फीसदी हिस्सा इस सेक्टर के लिए तय किया। इसके बावजूद इस सेक्टर की तस्वीर कुछ अच्छी नहीं है ।
आज के समय में एक ज्ञान अर्थव्यवस्था बनने के लिए शिक्षा क्षेत्र की दुर्दशा खत्म करना बहुत ही ज़रूरी है। गनीमत है कि इस बार के बजट में ऐसी कुछ घोषणाएँ मौजूद हैं, जिनसे इस क्षेत्र की चुनौतियों पर सरकार की नजर होने का संकेत मिलता है। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती है सरकारी स्कूलों में लगातार गिरता शिक्षा का स्तर। इस लिहाज से प्राइमरी शिक्षा पर चार साल में एक लाख करोड़ रुपये खर्च करने के अलावा वित्तमंत्री की यह घोषणा भी महत्त्वपूर्ण है कि 13 लाख से ज़्यादा शिक्षकों के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था की जाएगी। इंटीग्रेटेड बीएड प्रोग्राम के तहत शिक्षक अपनी सेवा के दौरान ही बीएड कर सकेंगे। तकनीकी डिजिटल पोर्टल ‘दीक्षा’ इस मामले में खासा मददगार हो सकता है। उम्मीद करें कि शिक्षकों के प्रशिक्षण का सीधा फायदा उन स्टूडेंट्स को मिलेगा जो अपनी पढ़ाई के अलावा व्यक्तित्व के विकास के लिए भी काफी हद तक इन शिक्षकों पर निर्भर करते हैं। 2018 के बजट में शिक्षा का महत्त्व (Importance of education in budget)
प्रधानमंत्री फेलोशिप स्कीम इस बजट की एक और महत्त्वपूर्ण तथा अहम घोषणा है। इसके तहत बीटेक कर रहे 1000 प्रतिभाषाली युवाओं को चिह्नित कर उन्हें आईआईटी और आईआईएससी जैसे संस्थानों में उच्चतर शिक्षा के शानदार अवसर मुहैया कराए जाएंगे। इन चुने हुवे छात्रों को अच्छी-खासी फेलोशिप दी जाएगी, मगर इस उम्मीद के साथ कि वे सप्ताह के कुछ घंटे पिछड़े इलाकों के इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स को पढ़ाने में लगाएंगे। इस कदम से जहाँ इंजीनियरिंग कर रहे टैलंटेड स्टूडेंट्स को अच्छी पढ़ाई के साथ-साथ आमदनी का एक जरिया मिलेगा, वहीं इससे इंजीनियरिंग प्रफेसर्स की कमी भी एक हद तक पूरी होगी। 2018 के बजट में शिक्षा का स्थान
50 फीसदी से ज़्यादा आदिवासी आबादी वाले इलाकों में एकलव्य स्कूलों की स्थापना और जिला स्तर के मेडिकल कॉलेजों को अपग्रेड कर 24 नए मेडिकल कॉलेज व अस्पताल बनाने जैसे ऐलान भी सही दिशा में उठाए गए कदम हैं। प्राथमिक स्तर की शिक्षा का पूरा सरकारी ढांचा लगभग ध्वस्त हो चुका है। इसे संवारने के लिए केंद्र को राज्य सरकारों के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय मिशन शुरू करना चाहिए. इसके बिना देश के संपूर्ण मानव संसाधन का लगभग नब्बे फीसदी हिस्सा स्थायी अविकास का शिकार हो सकता है।
क्या थीं उम्मीदें
सस्ता और आसान शिक्षा कर्ज
शिक्षा बजट में बढ़ोतरी
प्रायोगिक और प्रौद्योगिकी शिक्षा पर विशेष जोर
प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा
प्राथमिक शिक्षा का स्तर और गुणवत्ता सुधारने के लिए अधिक फंड
उच्च शिक्षा तक गरीब और मध्यम वर्ग के बच्चों की पहुंच
सामान्य वर्ग के मध्य आय वाले परिवार के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति
शैक्षणिक संस्थानों के अनुदान को बढ़ावा
शिक्षा क्षेत्र में जीएसटी में छूट मिलने की उम्मीदें
प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालयों तक रिक्त पड़े शिक्षकों के पदों पर भर्ती